Saturday, December 13, 2008

पाण्डेय जी vs पान्डी जी

"सर तो वो उपर नीचे ऐसे  कर रहा था जैसे कोइ कसाइ बकरा  हलाल करने  का इन्त्ज़ार कर रहा हो"...और  मन ही मन सोच रहा हो आ जा बेटा..बहुत दिनो से तेरा इन्तेज़ार था.....

ये उन दिनो की बात है जब मैने पहली बार नौकरी join की थी..शुरुवात मे २ महीने का training था..उसके बाद company मे joining थी...और ये उपरोक्त बाते मेरे दिमाग मे तब आयी थी जब मैने अपने PM को पहली बार 
देखा था.....वो २ महीने मैने कितनी मस्ती की मत पूछिये...वो फिर कभी विस्तार मे लिखुगा....२ महीने के बाद company मे आया था...

पहला दिन induction program था...उसि दिन कुछ higher official से भी मिला...मेरा PM उस दिन छुट्टी पर 
था..इसलिय उस दिन सिर्फ़ उस्सेय फोन पर हमारी बात करयी गयी ....मेरे PM के अन्दर कुल ५ लोग थे...उसी दिन हमे पता चला की मेरे PM का नाम आनन्द कुमार पान्डे है....

मस्त न...मस्त क्यो? अच्छा अच्छा एक बात मै आपलोगो को बताना भूल गया मैने चेन्नै की एक company join की थी ....और chennai की company मे जहां उतर भारत के लोग मुश्किल से पाये जाते है वहां आपका PM कोइ पान्डे होगा तो खुशी तो होगी ही न...

क्युं था ना मस्त? मै खुश था चलो कोइ उतर भारतीये अपना PM है...कभी कभी तो हिन्दी मै बात होगी ही....पहला दिन  तो कुछ नही हुआ ...६ कब बज गया पता ही नहिं चला...वो प्रथम और आखिरी दिन था जब मै ६ बजे company से निकल गया था.....

दूसरा दिन मै ९ बजे office पहुच गया था..अरे भाइ अपनी छवि बनानी थी ना...इसलिय बिल्कुल समय पर पहुच गया था...काम PM के आने के बाद ही पता चलता की क्या करना है..?इसलिय PM का इन्तज़ार करने लगा....इसी बीच lunch का समय  भी हो चला था...हां तो lunch भी हो गया ..लेकिन PM साहेब का कोइ अता-पता नही था..खैर ३ बजे बुलावा आया.....मतलब PM साहेब आ गये थे...उनसे मिलने जाना था....

"सर तो वो उपर नीचे ऐसे  कर रहा था जैसे कोइ कसाइ बकरा  हलाल करने  का इन्त्ज़ार कर रहा हो"...और  मन ही मन सोच रहा हो आ जा बेटा..बहुत दिनो से तेरा इन्तेज़ार था.....

खैर हाइ  हेल्लो हुइ...उसकी अग्रेंज़ी सुनकर कुछ धक्का सा लगा...उतर भारतीये  की अग्रेंज़ी ऐसी तो नहि होती है...फिर सोचा की हो सकता है यहां रह्ते रह्ते ऐसा हो गया हो..फिर उसे तमिल बोलते भी सुना....लेकिन यार ये तो पान्डेय है...पान्डेय तो पक्का  उतर भारतीये होते है....चलो तमिल भी सीख गया होगा..

office क दूसरा दिन और मैन ८ बजे निकल office से....PM से project के बारे मै विचार-विमर्श हुआ....क्या 
करना है क्या नहि .....लकिन मेरी उत्सुकता अभी तक बरकरार थी..जानने को बेत्ताब था मै आखिर ये चक्कर क्या है बास ..ये पान्डेय साहब कब से तमिल जैसे हो गये? आखिर ये है कहां के?माज़रा क्या है?बस फिर क्या थ मैने पूछ ही लिया अपने बगल मए बैठे collegue से....और जो सच सामने आया ..

वो ये कि भाइ साहब पक्के तमिल थे...उनका उतर भारत  से दूर दूर तक कोइ रिश्ता नही था....फिर ये नाम क्यु ऐसा है...अब क्या कहुं वो गलती मेरी ही थी..उनका नाम पान्डेय न होकर पान्डी था....इसलिय वो पक्के तमिल थे..और अभि भी  है .कहां जायेगें बेचारे...आज भी मेरा PM वही है..आज भी जब वो बात सोचता हु तो काफ़ी हंसी आती है...