Tuesday, December 16, 2008

ठक ठक...कही भूत तो नही ....(भाग दो )

रात के १२ बजे....अभी तक कोइ हलचल नहीं हुइ थी....मैं और मेरा दोस्त दो जन उस कमरे मे थे जिसमें दस्तक होने वाली थी..मेरे दोस्त को झपकी आनी शुरु हो गयी थी लकिन मैं निडर सिपाही की तरह डटा हुआ था....बस मन मे यही था की किसी तरह उसे पकरना है जिसने हमारी रातों की नींद हराम कर रखी है...

रात के १ बजे...दूसरे कमरे मे क्या हो रहा है कुछ अन्दाज़ा नहीं था...सब सो गये या जगे थे ये भी नहीं पता था...खैर मै जगा हुआ था और पुरे जोश के साथ डटा हुआ था....

तभी कुछ सरसराहट सी हुई...लगा की कोई हमारे दरवाज़े की तरफ़ आ रहा है...मै सतर्क हो गया..वो आवाज़ और पास आती गयी......मेरे दोस्त जो की दूसरे कमरे मे थे उन्हे ये सुनायी दे रहा था की नहीं मुझे कोई जानकारी नही थी....वो आवाज़ बिल्कुल पास आ गयी थी.... लगा की दरवाज़े के पास आके कोई रुका हुआ है....

अब डर लगना शुरु हो गया था....मेरा मन कह रहा था कि मै दरवाज़ा खोल दू पर शरीर साथ नहीं दे रहा था.....धप्प धप्प....जैसे ही उसने दरवाज़ा खट्खटाया मैने बिना विलम्ब किये हुए दरवाज़ा खोल दिया.....एक सेकेंड की भी देरी नहीं हुई थी..

दरवाज़ा खोलते ही मै हक्का बक्का रह गया था....सामने कोई नहीं था......ये कैसे हो सकता है मैने अभी अभी आवाज़ सुनी थी.....तब तक मेरे बाकी दोस्त लोग भी बाहर आ गये थे..आवाज़ उनलोगों ने भी सुनी थी..पर बाहर कोई नही था........

उस सारी रात हममे से कोइ सो नहीं सका...कहीं ये भूत वूत का चक्कर तो नहीं है, मेरे एक दोस्त ने कहा....सभी उसके तरफ़ घूर घूर कर देखने लगे...अभी तक ऐसी बातें किसी के दिमाग मे नहीं आयीं थी....हमारे सोचने की दिशा अब बिल्कुल बदल गयी थी....इतना तो हमने मान लिया था कि कुछ अप्राक्रतिक घटित हो रहा है..पहली बार मैने सब की आंखों में डर देखा था...हम ये घर छोरना भी नहीं चाहते थे...काफ़ी अच्छा और काफ़ी मेहनत से मिला था ये घर....तो फिर हमने एक और रात जागने का फ़ैसला किया और इसबार हमने बरामदे मे सोने का फ़ैसला किया..

दिल्ली की उस सर्दी में बाहर बरामदे मे सोना अपने पैर पर कुल्हारी मारने जैसा ही था....मरता क्या नहीं करता...धीरे धीरे रात ढ्लने लगी थी..हम सभी दोस्त एक साथ उस अन्ज़ाने शख्स का इन्त्ज़ार कर रहे थे जो कि था भी कि नहीं पता नहीं...ज्यों ज्यों रात गुजरती जा रही थी हमारी दिलों कि धड्कन बढ्ती जा रही थी...तभी हमे लगा कि कोई हमारी तरफ़ आ रहा है..हम सभी सजग हो गये...लेकिन इस बात को ५ मिनट हो गये और कोइ नहीं आया... सारी रात हमे कई बार एह्सास हुआ कि कोई आ रहा है पर कोई नहीं होता था....

पुरी रात बीत गयी और कुछ नही हुआ...मेरे दो दोस्तों को बुखार हो गया उस सर्दी के कारन...हमने सोचा कि अब अगर ये वाक्या दुबारा हुआ तो हम घर बदल लेंगे....लेकिन ये घटना दुबारा फिर कभी नहीं हुई....

आज भी जब कभी वो रातें याद आतीं हैं तो एक अजीब सी सिहरन सी हो जाती है...मेरी दिल्ली कि डायरी में ऐसे बहुत सारे पन्ने है जो मै आपलोगो के साथ बाटुगां...

ठक ठक...कही भूत तो नही ....

तभी कुछ सरसराहट सी हुई...लगा की कोई हमारे दरवाज़े की तरफ़ आ रहा है...मै सतर्क हो गया..वो आवाज़ और पास आती गयी......मेरे दोस्त जो की दूसरे कमरे मे थे उन्हे ये सुनायी दे रहा था की नहीं मुझे कोई जानकारी नही थी....वो आवाज़ बिल्कुल पास आ गयी थी.... लगा की दरवाज़े के पास आके कोई रुका हुआ है....


बात उन दिनो की है जब मैं दिल्ली मैं था..करीब २ साल हो चुके थे दिल्ली मे..मुझे शुरु से ही दिल्ली काफ़ी अच्छी लगी थी..सबसे मस्त तो मुझे यहां की सर्दी लगती थी..और वो समय भी सर्दी का ही था..हम पांच दोस्त साथ मे रह्ते थे...हमने एक नया flat किराये पर लिया था...और अभी मुश्किल से २ से ३ सप्ताह हुए थे इसमे आये हुए....कुछ अजीब सा लग तो रहा था पर हमने कभी उतना ध्यान नहीं दिया था...
लेकिन पिछ्ले २-३ दिनो से कोइ रात मे आकर हमारे दरवाजे पर दस्तक देता और जब हम दरवाजा खोल कर बाहर आते तो कोइ नहीं दिखाइ देता....पहले तो हमें लगा कि बगल वाले flat के बच्चे शरारत कर रहे हैं...पर सवाल यह था कि इतनी रात गये भला वो क्युं परेशान करेगें...हमारे appartment मे कुल १२ flat थे....हमने सोचा कि उन्हीं मे से कोइ परेशान कर रहा होगा....इसलिये हमने २-३ दिनो तक इसपर ध्यान नहीं दिया...लकिन जब ये रोज कि बात हो गयी तब हमे लगा कि अब तो कुछ करना परेगा...और हमने रात भर जगने का निश्च्य किया...

हमारे flat की बनावट कुछ इस तरह थी की....हमारे flat के २ रूम के दरवाज़े बाहर बरामदे मे खुलते थे..लेकिन दस्तक हमेशा एक ही दरवाज़े पर होता था...इसलिय हम ३ लोग दुसरे कमरे मे चले गये और बाकी २ लोग दस्तक वाले कमरे मे चले गये.....हमारा इरादा यह था कि जब दस्तक होगी तब दूसरे कमरे से लोग निकल कर उसे धर दबोचेंगे.....

रात के ११ बजे ....अभी तक कुछ नहीं हुआ था....बाहर रात की कालिमा फैली हुई थी...दूर दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था...बीच बीच मे कुत्ते की भौकने की आवाज़ सुनायी देती थी.....हम सभी चुपचाप दरवाज़े से चिपक कर बैठे हुए थे.....और दस्तक होने का इन्तेज़ार कर रहे थे.....

क्रमश: